Wednesday, 8 April 2015
Tuesday, 7 April 2015
Hazrat Sayyed Najmuddin Shah Qalander R. A.
چھوٹی سی تفصیل
Small detail
- हज़रत सय्यद नजमुद्दीन शाह कलन्दर बिन सय्यद निज़ामुद्दीन गज़नवी बिन सय्यद नूरुद्दीन मुबारक गज़नवी की पैदाईश 637 हिजरी (सन् 1234) में देहली (दिल्ली) में हुई। आप बड़े नामवर बुज़ुर्ग और जमाए कमालात बुज़ुर्ग गुज़रे है। आप का सिलसिला हज़रत अमीरूल मोमेनीन अली मुर्तुज़ा करम अल्लाह तक पहुंचता है। अल्लाह ने कलन्दर को मर्तबा ए रुही ऐसा अता फरमाया है कि एक हाल और एक वक़्त में रूहानी कुव्वत से वह अपने को कई जगह दिखा सकते हैं। आप की उम्र 200 बरस की हुई और आप ने अपनी ज़िन्दगी में कई मुल्कों का सफर किया, जिनमें रूम, मक्का मुअज़्ज़मा, स्पेन, चीन, यमन शामिल है। नज़मुद्दीन शाह कलन्दर 50 साल मक्का ए मुअज़्ज़मा में रहे और आपने बेरी की पत्तियों से अफतार किया, 40 साल हाजियों को पानी पिलाया, 42 हज किये। आप 30 साल तक एक पत्थर पर बैठे रहे और इबादत की उस वक्त आवाज़े ‘‘अल्लाहु‘‘ आपके सीने से निकलती थी साथ ही उस पत्थर से भी यही आवाज़ आती थी। एक मुद्दत तक आपने सफर किया फिर तगदीर इलाही आप को हिन्दुस्तान खींच लाई। जब आप मांडव में आए (826 हिजरी सन् 1423) तो यहां की आबोहवा ने आप को जाने न दिया। नालछा गांव के पास चन्दोला तालाब के किनारे आप गोषानषी हो गए। आपकी वफात 20 जि़ल हिज्जा 837 हिजरी (सन् 1434) में हुई, उस ज़माने में होषंग शाह गोरी इब्न दिलावर खाँ मालवा के सुल्तान थे। आपकी वफात के चन्द साल बाद सुल्तान गयासउद्दीन खिलजी ने इसी तालाब (चन्दौला) के किनारे एक गुम्बद तामीर करा दिया था। यहां 1021 हिजरी (सन् 1618) तक वही रौनक व ताज़गी मौजूद थी बाद में यह गुम्बद शहीद हो गई और दिवारें बाकी रही। आपकी पैशानी पर नूरानी खुतूत ऐसे नज़र आते थे जिससे लफ्ज़ ‘‘कुतबुल आफ़ताब‘‘ लिखा हुआ दिखता था। जिस तरह हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैह व सल्लम का साया नहीं था उसी तरह जब सय्यद नज़मुद्दीन शाह कलन्दर पर वज़्द तारी होता तो उस वक़्त आपका साया नहीं दिखता था। कछोछे (यू.पी.) में हज़रत सय्यद अशरफ जहाँगीर समनानी ने आपकी सफर में दावत की तो दूसरे दिन आपने उनको और उनके सभी साथियों को दावत पर बुलाया। आपके पास सामान कुछ भी न था और लोग बहुत, सब हैरान थे कि आख़िर क्या होगा ? आपने देग चूल्हे पर रख दी और जो कुछ साग-पात, फुकरा (खाने का सामान) साथ था उसमें डाल दिया और कहा कि जो शख़्स जिस किस्म का खाना मांगे उसे वही खाना देग में से निकालकर खिलाओं, चुनाँचे हर शख़्स ने अपनी ख़्वाहिश के मुताबिक़ खाना उसी देग में से खाया।
- एक दिन सरकार का ख़ादिम बाज़ार से चिराग़ के लिए तेल लाने चला तो सरकार ने फरमाया कि वहां जाने की क्या ज़रूरत है, तेल इसी तालाब (चन्दौला) में है, भर कर रोशन कर लो। जब यह ख़बर मशहूर हुई तो तमाम लोग उस तालाब का पानी ले जाकर चिराग़ जलाने लगे। एक रोज़ जब बहुत हुजूम (भीड़) हुआ तो आप ने फरमाया कि तालाब में तो पानी है तेल कहाँ से आया ? उसी वक़्त वह फिर पानी हो गया। आपकी दरगाह म.प्र. के मशहूर पर्यटन स्थल व एशिया के सबसे बड़े गढ़ मांडव से 11 कि.मी. पहले नालछा गाँव के चन्दौला तालाब के पास मौजूद है। दरगाह पर रोज़ सैकड़ों की तादाद में अकीदतमंद लोगों का आना-जाना रहता है, रविवार (इतवार) और छुट्टी के दिनों में यह तादाद हज़ार से भी ऊपर पहुंच जाती है। आने वाले लोग आपसे हर तरह की मन्नतें और मुरादें पाते है। सरकार के यहां आने वाले लोगों में हर धर्म और मज़हब के लोग रहते हैं जो कि बड़ी अकीदत के साथ सरकार के दरबार में हाज़री देते है। हज़रत नज़मुद्दीन शाह कलन्दर का फैज़े आम दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है, सरकार के चाहने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है। इन्दौर, धार, धरमपुरी, मनावर, देवास, उज्जैन, खरगोन, बुरहानपुर व आसपास के तमाम छोटे-बड़े शहर व कस्बों से हज़ारों की तादाद में सरकार के चाहने वाले दरबार में हाज़िर होकर फैज़ पाने लगे हैं यहां तक कि गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र के साथ-साथ हिन्दुस्तान की सभी जगहों से ज़ायरिन आने लगे है। दरगाह पर आने वाले ज़ायरिनों (श्रद्धालुओं) के लिए ज़रूरत के मुताबिक हर चीज़ का इंतज़ाम है, जैसे ठहरने के लिए मुसाफिर खाना, खाना बनाने के लिए लंगर खाना, नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद, तहारत खाने (बाथरूम) और भी तमाम अहम ज़रूरतों का इंतज़ाम है। कलन्दर सरकार की 20वीं शरीफ जो कि आपके विसाल की 20 तारीख़ है, हर महिने मनाई जाती है जिसमें सुबह 9 बजे गुस्ल व संदल होकर फातेहा ख़्वानी व दुआ ए ख़ेर होती है, बाद लंगर का इन्तज़ाम दरगाह इंतेजामिया कमेटी की तरफ से रहता है जिसमें हज़ार से भी ज्यादा अक़ीदतमंद लोग आते हैं। हर साल 20 और 21 जिलहिज्ज (इस्लामी कैलेंडर का आख़री माह) में सरकार का उर्स मुबारक मनाया जाता है जिसमें अलग-अलग जगहों से करीब 15 से 20 हज़ार लोग शिरकत करते है। उर्स में फातेहा ख़्वानी, संदल, कव्वाली और लंगर का इंतज़ाम दरग़ाह इंतेज़ामिया कमेटी की तरफ से किया जाता है, साथ ही आने वाले मेहमानों की ज़रूरतों का भी ख़्याल रखा जाता है।
Monday, 6 April 2015
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